तुम हो जग के पालनहारे।
ब्रहां, विष्णु, महेश हमारे।।
हे आपदा प्रबंध प्यारे।
सबहु तेरी कृपा सहारे।।
सूनी सड़क गली चौबारे।
जैसे नभ से ओझल तारे।।
घर-घर में नर-नारी सारे।
बिन प्राणवायु जीवन हारे।।
भौतिक सुख इच्छा ने भुलाए।
पर्यावरण क्षति हमें रुलाए।।
जगह जगह हम पेड़ लगाएँ।
अब नहीं वन-कटान कराएँ।।
त्राहिमाम! हम शीश नभाएँ।
माथे पग रज तिलक लगाएँ।।
प्राणवायु जग भर फैलाएँ।
फिर से धरा सकल महकाएँ।।
हमने किए पाप हैं भारी।
भूले थे हम तुम अधिकारी।।
म़ाफ करो हम रचना त्यारी।
त्राहिमाम!देवधि उपकारी।।
हम तेरे बालक मनुहारी।
त्राहिमाम! हे जग गिरधारी।।
प्रभु सुन लीजिए अरज हमारी।
करो दया जग लीलाधारी।।

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