तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को
अब ज़रा यूँ भी आज़मा मुझ को
ये ज़माना बुरा नहीं है मगर
अपनी नज़रों से देखना मुझ को
बे-सदा काग़ज़ों में आग लगा
आज की रात गुनगुना मुझ को
तुझ को किस किस में ढूँढता आख़िर
तू भी किस किस से माँगता मुझ को
अब किसी और का पुजारी है
जिस ने माना था देवता मुझ को
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