तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को (ग़ज़ल)

तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को
अब ज़रा यूँ भी आज़मा मुझ को

ये ज़माना बुरा नहीं है मगर
अपनी नज़रों से देखना मुझ को

बे-सदा काग़ज़ों में आग लगा
आज की रात गुनगुना मुझ को

तुझ को किस किस में ढूँढता आख़िर
तू भी किस किस से माँगता मुझ को

अब किसी और का पुजारी है
जिस ने माना था देवता मुझ को


  • विषय : -  
यह पृष्ठ 328 बार देखा गया है
×

अगली रचना

जिन बातों को कहना मुश्किल होता है


पिछली रचना

जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें