तीन दिनों से (कविता)

तीन दिनों से लगातार बरसे हैं बादल
ननकू तीन दिनों से आग ताप रहा है
रधिया के चूल्हे के पीछे
तीन दिनों से हँडिया औंधी धरी है
तिलहन और कपास
बहुत ख़ामोश खड़े हैं
उनकी पत्ती के ध्वज आधे झुके हुए हैं
उनके फूलों के शव तैर रहे हैं तीन दिनों से।
भूखी बछिया खूँटे से ही टँगी हुई है
तीन दिनों से हर आहट पर
बैल खड़े हुंकार रहे हैं।

और बड़े दरवज्जे में
माचिस की तीली, बीड़ी के टोंटे
चिलम, चौपड़, हा... हा... ही... ही..., आल्हा
लगातार है तीन दिनों से।

और अचंभा
गोबर वाली के घर चूल्हा
तीन दिनों से जलता है
रोटी बनती है
बच्चे का भी पेट भरा है।

तीन दिनों से उसका ख़ाविंद
दारू पीता है, गाली देता है पटेल को
तीन दिनों से गोबर वाली
पटेल के घर ही सोती है।


रचनाकार : शरद बिलाैरे
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