साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
करौली, राजस्थान
1991
उमड़कर उदासी उन्मुनी उलझन-सी, उदास उधर उसे इधर इसको करत। वह वहाँ तड़पती तुम तमा तरसते, उदासी उनकी दिल दहलाती मन मरत। बनी बेडी़ बेरहम प्रथाएँ प्यार पाने में, जुदा जान-जिस्म को करो क़ैद कुसुम करत। मुहब्बत-मिठाई सुहाई संसार को कब? 'मारुत' इश्क़ इनका गाढ़ा गुनाह क्यों कहत?
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