तन पर यौवन (कविता)

ओ रे बचपन!
फिर से सच बन।
मायूसी में,
ख़ामोशी में,
चिंताओं में,
दुविधाओं में,
निर्धनता में,
नीरसता में,
पीर भुलाकर
कर पुलकित मन।
ओ रे बचपन!

तू निश्छल था,
तू अविरल था,
तू हँसता था,
तू खिलता था,
तू सुख भी था,
तू दुख भी था,
जब खोया था,
आया जिस दिन
तन पर यौवन।
ओ रे बचपन!
फिर से सच बन।

घुटन नहीं थी,
चुभन नहीं थी,
सिर्फ़ प्रीत थी,
सदा जीत थी,
सोच सरल थी,
अति निर्मल थी,
जिज्ञासा थी,
सच भाषा थी,
फिर से ले आ
वो भोलापन
ओ रे बचपन!
फिर से सच बन।।


लेखन तिथि : 2020
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