ओ रे बचपन!
फिर से सच बन।
मायूसी में,
ख़ामोशी में,
चिंताओं में,
दुविधाओं में,
निर्धनता में,
नीरसता में,
पीर भुलाकर
कर पुलकित मन।
ओ रे बचपन!
तू निश्छल था,
तू अविरल था,
तू हँसता था,
तू खिलता था,
तू सुख भी था,
तू दुख भी था,
जब खोया था,
आया जिस दिन
तन पर यौवन।
ओ रे बचपन!
फिर से सच बन।
घुटन नहीं थी,
चुभन नहीं थी,
सिर्फ़ प्रीत थी,
सदा जीत थी,
सोच सरल थी,
अति निर्मल थी,
जिज्ञासा थी,
सच भाषा थी,
फिर से ले आ
वो भोलापन
ओ रे बचपन!
फिर से सच बन।।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
