चलों आज हम ढलते हुए इस सूर्य को करें प्रणाम,
साॅंझ हो गई संस्कारों व संस्कृति का करें सम्मान।
भानु दिनकर भास्कर दिवाकर मार्तंड इसका नाम,
समय से आकर बाॅंटता यह सबको ज्ञान-समान॥
सम्पूर्ण-विश्व को महकाता ये रखता सबका ध्यान,
हाज़िरी अपनी रोज़ देता पर ना करता अभिमान।
अकेले रहने की हिम्मत भी यह देता सूर्य भगवान,
कोयल मोर पपीहा बुलबुल भी गाते है गुणगान॥
रोज़ उदय होता है इनका एवं रोज़ाना यही काम,
अंधकार को मिटाकर करता जग को प्रकाशवान।
अनुशासन का ये आधार है ना लेता कोई भी दाम,
ख़ुद जलकर सुख शान्ति देता ये सूरज भगवान॥
लेता है हर व्यक्ति आपका हर रोज़ उगते हुए नाम,
जल चढ़ाकर पूजन करता नहीं करता कोई शाम।
सूर्योदय को करे सभी, सूर्यास्त को भी करें प्रणाम,
दार्शनिक दृष्टि से देखो कभी करता यह विश्राम॥
हर्षित होता है जग सारा देखकर आपको आसमाँ,
मुरझाऍं फूल भी खिल जातें आती मुख-मुस्कान।
दिखते हो आते-जाते चारों दिशाओं में लाल-लाल,
सर्दियों में ये धूप पाकर आ जाती बदन मे जान॥
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