सुंदरियो! (कविता)

सुंदरियो-यो-यो
हो-हो
अपनी-अपनी छाती पर
दुद्धी फूल के झूले डाल लो!
नाच रोको नहीं!
बाहर से आए हुए
इस परदेशी का जी साफ़ नहीं।

इसकी आँखों में कोई
आँखें न डालना
यह ‘पचाई’ नहीं
बोतल का दारू पीता है

सुंदरियो, जी खोलकर
हँसकर मत मोतियों
की वर्षा करना
काम-पीड़ित इस भले आदमी को
विष-भरी हँसी से जलाओ!
यों, आदमी यह अच्छा है
नाच देखना
सीखना चाहता है।


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