सुन लो सारे (कविता)

रफ़ कॉपी में रंग रखों
तुम अब मुक़म्मल सारे,
तुम्हें लिखना होगा
पढ़ते रहना होगा
गरचे स्कूल बंद हो सारे।

रूह के लिबाज़ को
कुछ यूँ पेश किया करो,
तपने दो ख़ुद को
पर आफ़्ताब बनो सारे।

रेत का मलबा हैं वजूद,
इंकार नहीं किया करते,
मुक़म्मल होना हैं?
इंसाँ फ़रिश्ते नहीं होते प्यारे,
चाँद को छूना हैं तो
मेहनत करो सारे।

जिनका अब तक रहा,
किताबों का सफ़र अच्छा,
जलती महक में वो उलझें,
नहीं समझ रहें हो तुम
सही ग़लत क्या हैं,
क्यों भटक रहे हो सारे।

इश्क़ में गुफ़्तगू के लिए
अभी पड़ा ज़माना हैं,
घरों में क़ैद हो तो पढ़ो,
ये उम्र सृजन करती हैं,
पेशानी का हर फ़साना,
तक़दीरें सजती नहीं,
सजाई जाती हैं,
कर्मवीर कहता हैं
सुन लो सारे।


लेखन तिथि : 20 मई, 2021
यह पृष्ठ 98 बार देखा गया है
×

अगली रचना

महँगाई


पिछली रचना

तेरा शैदा हैं कवि
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें