साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3481
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
1911 - 1987
हम निहारते रूप, काँच के पीछे हाँप रही है मछली। रूप-तृषा भी (और काँच के पीछे) है जिजीविषा।
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