स्मृतियों के वन होते तो
सबसे घने मेरे होते
हर छोटी बात
हर महीन जुंबिश किसी डाल की
लहर लहर ताल की
कोई संकर शब्द
कोई हुंकारा
कोई चीख़
कोई रंग
रूप अरूप
रस-परस
गंध-मंद
कुछ नहीं तो
गहरी नींद के पहले के स्वप्न
उठने से पहले का भ्रम विभ्रम
बिल्कुल किसी चुंबन के बीच
चिट्ठी उंगली की मरोड़
क्या नहीं सहेजा
उगाया
सहज उगा
बीजा है वहाँ
कि हाथ को हाथ नहीं सूझता
वर्तमान की धूप नहीं पहुँचती
बस पसीजता ही रहता है
वहाँ मन का मधुबन
सर्दी उतार पर है अब,
वसंत मध्यवयस का हुआ
पतझड़ी पत्तियाँ अब नहीं उड़तीं
आँखों में लगता है
सूखी पत्तियों के जलने का धुआँ
सधी उड़ान भरती अबाबीलें
बैठ गई हैं
एक गोल पत्थर पर
करने को समीक्षा
बीतते मौसम की
मेरे हाथ में काग़ज़ है
और सिर पर धूप
एक जंगल की आग
इन काग़ज़ों को जलाएगी
और फिर उभरेगी
एक पूरी जीवन गाथा
बंदी होंगे शब्द
अर्थ बग़ावत कर देंगे।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें