सिर्फ़ मरते हैं यहाँ हिन्दू, मुसलमाँ या दलित
अब किसी भी जगह पर मरता नहीं है आदमी
बँट गए अब तो स्वयं भगवान कितनी जाति में
अब सभी की अर्चना करता नहीं है आदमी
धर्म, जाति और भाषा के लिए लड़ता है ये
जान लेने में भी अब डरता नहीं है आदमी
अपने ऊपर आए संकट, तो सभी हरते पर–
देश पर दुःख आए तो, हरता नहीं है आदमी
दिख रहा है देश टूटा, धर्म में औ’ जाति में
किन्तु फ़िर भी देख ये, सुधरता नहीं है आदमी
रोज़ ही इंसानियत की लाश मिलती हैं यहाँ
जाति मरतीं, धर्म मरते, मरता नहीं है आदमी
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