हे लेखनी-मसि भाजन भगवन,
हे धर्मराज भगवन।
तुझको पीताम्बर अर्पण,
तुझको पुष्प माला अर्पण।
हे श्री चित्रगुप्त भगवान, जय श्री चित्रगुप्त भगवान।
हे श्री चित्रगुप्त भगवान, जय श्री चित्रगुप्त भगवान।
श्याम-रंग, कमल-नयन के हो तुम स्वामी,
न्याय और ज्ञान के, भी हो तुम स्वामी।
तुम हो पाप-पुण्य का निर्धारक,
तुम हो सबके कर्मो का विचारक।
हे श्री चित्रगुप्त भगवान, जय श्री चित्रगुप्त भगवान।
हे श्री चित्रगुप्त भगवान, जय श्री चित्रगुप्त भगवान।
कार्तिक माह के, शुक्ल पक्ष में, घोर तेरा पूजन होता स्वामी,
रोली, अक्षत, पंचामृत, मिठाई, सब तुझको अर्पण करे स्वामी।
तुम हो लेखा-जोखा का संचालक,
तुम हो सबके जन्मों का निर्धारक।
हे श्री चित्रगुप्त भगवान, जय श्री चित्रगुप्त भगवान।
हे श्री चित्रगुप्त भगवान, जय श्री चित्रगुप्त भगवान।
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