शोर चारों ही तरफ़ देख सवालों का है (ग़ज़ल)

शोर चारों ही तरफ़ देख सवालों का है,
आज दुश्मन ये नया कौन उजालों का है।

आग चूल्हों में न हो पेट मगर भर देगा,
एक फ़नकार यहाँ यार कमालों का है।

बीज नफ़रत के बड़े तेज़ उगा करते हैं,
हाल मुल्तान में ऐसा ही शिवालाें का है।

तू अगर शेर है शेरों से लड़ा कर शेरू,
पी रहा ख़ून क्यों लाचार ग़ज़ालों का है।

खेत देखे न कभी लू न पसीना देखा,
राज बाज़ार पे उनके ही दलालों का है।

पागलों और बग़ावत की हदें क्या होंगी,
मुफ़लिसी देख रही ख़ाब निवालों का है।


रचनाकार : मनजीत भोला
  • विषय :
लेखन तिथि : 2 अक्टूबर, 2021
यह पृष्ठ 229 बार देखा गया है
अरकान : फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122 1122 1122 22
×

अगली रचना

बेशक नहीं पसंद वो नफ़रत न हम रखेंगे


पिछली रचना

एक जुट तेरे क़बीले हो गए


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें