शरमा गए लजा गए दामन छुड़ा गए
ऐ इश्क़ मर्हबा वो यहाँ तक तो आ गए
दिल पर हज़ार तरह के औहाम छा गए
ये तुम ने क्या किया मिरी दुनिया में आ गए
सब कुछ लुटा के राह-ए-मोहब्बत में अहल-ए-दिल
ख़ुश हैं कि जैसे दौलत-ए-कौनैन पा गए
सेहन-ए-चमन को अपनी बहारों पे नाज़ था
वो आ गए तो सारी बहारों पे छा गए
अक़्ल ओ जुनूँ में सब की थीं राहें जुदा जुदा
हिर-फिर के लेकिन एक ही मंज़िल पे आ गए
अब क्या करूँ मैं फ़ितरत-ए-नाकाम-ए-इश्क़ को
जितने थे हादसात मुझे रास आ गए
अगली रचना
शब-ए-फ़िराक़ है और नींद आई जाती हैपिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें