शहर क्या होता है (कविता)

जब बनने लगा था यह नगर,
चकित हुई थीं
झील के गर्भ में पलती मछलियाँ।
सड़कों पर उतर आया था
नए वाहनों का शोर
और सबके सपनों का क़ाफ़िला
चल पड़ा था पीछे-पीछे।

जब रास्ते रौंदे गए
तब जाना
कि शहर क्या होता है!


रचनाकार : शैलप्रिया
यह पृष्ठ 320 बार देखा गया है
×

अगली रचना

विस्मृति


पिछली रचना

पालने की हँसी
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें