शब्द (कविता)

नहीं याद आता है वह शब्द
जिसे बड़ी मासूमियत से
दफ़नाया था मैंने,
बस, उसकी क़ब्र की जगह
नहीं भूल पाई मैं।

शब्द जड़ नहीं होते।
जब कभी हम
तान लेते हैं शब्दों के बाण
और कभी ढाल की तरह
उन्हें खड़ाकर
रोक लेते हैं वार।

अर्थ की असीम व्याख्या कर
शब्दों में उलझ जाते हैं हम,
तब
प्यार की परिभाषा बदल जाती है।


रचनाकार : शैलप्रिया
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