साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
झेलम, पंजाब
1934
शाम से आज साँस भारी है, बे-क़रारी सी बे-क़रारी है। आप के बा'द हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है। रात को दे दो चाँदनी की रिदा, दिन की चादर अभी उतारी है। शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले, कैसी चुप सी चमन में तारी है। कल का हर वाक़िआ' तुम्हारा था, आज की दास्ताँ हमारी है।
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