सीखना चाहता हूँ (कविता)

नदी के पास
नहीं है कोई क़लम
न ही कोई तूलिका
न ही हथौड़ा छेनी

फिर भी लिखती है
नई इबारत
बनाती है
नए-नए चित्र
गड़ती है
नई-नई आकृतियाँ
कठोर शिलाखंडों पर

हर लेती है उनका बेडौलपन

सीखना चाहता हूँ मैं भी नदी से
यह नायाब हुनर।


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