साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
पिथौरागढ़, उत्तराखण्ड
1971
नदी के पास नहीं है कोई क़लम न ही कोई तूलिका न ही हथौड़ा छेनी फिर भी लिखती है नई इबारत बनाती है नए-नए चित्र गड़ती है नई-नई आकृतियाँ कठोर शिलाखंडों पर हर लेती है उनका बेडौलपन सीखना चाहता हूँ मैं भी नदी से यह नायाब हुनर।
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