साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बीकानेर, राजस्थान
1964
ईश्वर की अदालत में एक नदी गिड़गिड़ा रही थी कोई तालाब हाथ बाँधे बैठा था उकड़ूँ समंदर उम्मीद हारे खड़े थे पर्वत अनमने से पसर गए थे बावड़ियाँ ऊँघ रही थीं एक-एक कर सभी को थी प्रतीक्षा फ़ैसले की निश्चित सज़ा की उधर ईश्वर प्यास के मारे था बेहाल कह भी नहीं पा रहा था कोई भी उठे मेरे कंठ में बैठ जाए मैं प्यासा नहीं मरना चाहता
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