हे ज्ञानदायिनी बुद्धिदायिनी माँ सरस्वती
तुम हो कितनी महान,
नहीं कोई कर सकता इसका बखान।
त्रिभुवन तुम्हारी आभा से है चमक रहा,
तुम्हारा दिव्य ज्ञान सदियों से धरती पर बरस रहा।
जिस पर होती कृपा तुम्हारी, महान बन जाता है,
आने वाला काल भी उसका गुण गाता है।
जिस गीता ज्ञान ने कृष्ण को महान किया,
वह भी तो तुमने ही प्रदान किया।
अर्जुन की धनुर्विद्या, सूर तुलसी काली का ज्ञान,
वाल्मीकि व्यास को किसने बनाया महान।
वेदों का सृजन हो या रोग का निदान,
साहित्य संगीत हो या कला विज्ञान,
सब है आपका ही भूषण वरदान।
है रत्नगर्भा वसुन्धरा असंख्य रत्नों की खान,
पर विद्या रत्न से बढ़कर कौन महान।
हे हंसवाहिनी वीणा धारिणी माँ सरस्वती!
तुम हो कितनी महान,
नहीं कोई कर सकता इसका बखान।
तुमको है भूषण का कोटि प्रणाम!
तेरी शोभा नयनाभिराम।

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