माँ तेरे पैरों पर, शब्दों का फूल चढ़ाता हूँ।
तेरे सम्मुख, अपनी लेखनी अर्पित करता हूँ।
ह्रदय से मैं तुझे, नमन बार-बार करता हूँ।
अपने अंतर्मन से, मैं तेरी स्तुति करता हूँ।
अपने पवित्र विचारों का, भोग लगाता हूँ।
तेरी विभुतियों को, मंत्र स्वरूप प्रस्तुत करता हूँ।
प्रसाद स्वरूप, कला और विद्या ग्रहण करता हूँ।
विद्या तो सिर्फ़, तेरी कृपा से ही पा सकता हूँ।
कला में पारंगत, तेरे आशीष से हो सकता हूँ।
तेरा लेखनी में विराजते, मैं रचयिता हो सकता हूँ।
मैं अज्ञानी, मुझ में ज्ञान भरने की मिन्नत करता हूँ।
सर्वहितकारी रचयिता, बनने की कामना करता हूँ।
सफलता का आस लिए, ये क़लम मैं उठाता हूँ।
तेरी आराधना कर, अब मैं लेखन शुरू करता हूँ।
माँ तेरे पैरों पर, शब्दों का फूल चढ़ाता हूँ।।
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