हे वीणा धारिणी देवी!
अंधियारा दूर कर दो,
मैं हूँ अज्ञानी माता
विद्या बुद्धि का वर दो।
हे श्वेत वस्त्र धारिणी!
मनोकामना पूरी कर दो,
उस मंदिर से उठकर
पग मन मंदिर में धर दो।
मधुर वचन ही बोलूँ
माँ मुझे ऐसा स्वर दो,
ज्ञान की गंगा बहा कर
उपकार मुझ पर कर दो।
वंदना करता माँ तेरी
प्रीति दिल में भर दो,
अभिलाषा करो माँ पूरी
आशीष अपना वर दो।
शील, विनय जैसे सद्गुण
हृदय सुशोभित कर दो,
उस मंदिर से उठकर
पग मन मंदिर में धर दो।
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