सपने से बाहर (कविता)

गा रहा है उनका रुधिर घृणा के गीत अपनी भुजाओं में
मलबे के ढेर पर वे बैठे हैं और यहीं बजाएँगे अपने ढोल

तारों से अनुपस्थित आकाश के नीचे
जल रही है उनकी ढिबरियाँ अँधेरों से लड़ते हुए

निर्वासन में उनकी साँसे सामान्य से अधिक गति में हैं
अधिक से कहीं अधिक जन्म ले रहे हैं उनके सपने

सपने से बाहर निकलकर वे
देखते हैं उनके उठे हाथ सपनों में

वे हस्बमामूल हैं अब तक
और उनके नाख़ून ख़ून की लालिमा से भर उठे हैं।


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