संकल्प (गीत)

मत बन अँधा गूँगा बहरा,
क्या तेरी मजबूरी है?
प्रकृति को बचाना ही होगा,
ये संकल्प ज़रूरी है।

वन गिरि पंछी ताल तलैया,
अति शोषण क्यों जारी है?
ताप बढ़ा हिमखण्ड पिघलता,
अब विनाश की बारी है।
आ एक साथ एक मंच पर,
क्यों एकता अधूरी है?
प्रकृति को बचाना ही होगा,
ये संकल्प ज़रूरी है।

कुतर रहे हैं दीमक बनकर,
लोकतंत्र की चादर को।
देखकर कैसे सहन होगा,
भारती की अनादर को।
आगे आओ संघर्ष करें,
एक क़दम की दूरी है।
प्रकृति को बचाना ही होगा,
ये संकल्प ज़रूरी है।

भ्रूण हत्या औ' बलात्कार,
दहेज की लगी आग है।
घर में अपने ही नोंच रहें,
रिश्तों में लगी दाग है।
एक नई सुबह की हवा में,
एक नवल गान धुरी है।
प्रकृति को बचाना ही होगा,
ये संकल्प ज़रूरी है।


लेखन तिथि : 2021
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प्रभा


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