समझाया हमने कि हम भी जले हैं (गीत)

सज धज पतंगे कहाँ को चले हैं,
समझाया हमने कि हम भी जले हैं।
निकला है घर से फिर इक दीवाना,
कहता है मुझको मोहब्बत निभाना।
अरमाँ ये दिल में कैसे पले हैं,
समझाया हमने कि हम भी जले हैं।
शमा के लिए वो कुछ और ही है,
ये तो ज़माने का इक तौर ही है।
शमा के लिए तो इक दौर आना,
शमा के लिए तो इक दौर जाना।
समझो नहीं तुम इसको फ़साना,
मिट जाएगा फिर इक दीवाना।
एक से अब दो ही भले हैं,
समझाया हमने कि हम भी जले हैं।


रचनाकार : गोकुल कोठारी
लेखन तिथि : 22 अप्रैल, 2022
यह पृष्ठ 255 बार देखा गया है
×
आगे रचना नहीं है


पिछली रचना

शहीद-ए-आज़म
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें