समदर्शी (कविता)

सुख दुःख
क्या?
मन के विकल्प!
इसी विचार से,
कायाकल्प।
समभाव रहे,
जिसका मन।
पाते रहे सुख,
निज जीवन।
रहे सदा खुश,
अपना तन मन;
आई कहती,
ये गूढ़ बातें।
पाया समझ जो,
इस तथ्य को।
मिटे विषाद,
औ ग़म की रातें।


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 23 जुलाई, 2013
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