सँभल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा
मिज़ाज गर्म है मौसम बदल रही है हवा
वो जाम बर्फ़ से लबरेज़ है मगर उस से
लिपट लिपट के मुसलसल पिघल रही है हवा
इधर तो धूप है बंदिश में और छतों पे उधर
लिबास बर्फ़ का पहने टहल रही है हवा
बुझा रही है चराग़ों को वक़्त से पहले
न जाने किस के इशारों पे चल रही है हवा
जो दिल पे हाथ रखोगे तो जान जाओगे
मचल रही है बराबर मचल रही है हवा
मैं कह रहा हूँ हवा है तो जल रहे हैं चराग़
वो कह रहे हैं चराग़ों से जल रही है हवा

अगली रचना
हवा के हाथ में ख़ंजर है और सब चुप हैंपिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
