साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
झेलम, पंजाब
1934
सहमा सहमा डरा सा रहता है, जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है। काई सी जम गई है आँखों पर, सारा मंज़र हरा सा रहता है। एक पल देख लूँ तो उठता हूँ, जल गया घर ज़रा सा रहता है। सर में जुम्बिश ख़याल की भी नहीं, ज़ानुओं पर धरा सा रहता है।
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