सच ये है बे-कार हमें ग़म होता है (ग़ज़ल)

सच ये है बे-कार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है

ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हम से पूछो कैसा आलम होता है

ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की
जब होता है कोई हमदम होता है

ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है

ज़ेहन की शाख़ों पर अशआर आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है


रचनाकार : जावेद अख़्तर
  • विषय : -  
यह पृष्ठ 412 बार देखा गया है
×

अगली रचना

हम तो बचपन में भी अकेले थे


पिछली रचना

जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें