दो देश नहीं लड़ते
दो विचार नहीं लड़ते
लड़ते हैं
दो जज़्बात
जो
जज नहीं करते
अपनी ही बात।
लड़ना ही है
तो लड़ो अपनी
अह्म, ईर्ष्या, द्वेष से
जो किसी को क़ाबिल नहीं
बनाती
घायल कर देती हैं
अपनी हुनर, अपनी ज़मीर
अपनी निशानी
जो एक प्राचीर
बन जाती है
अपनी सभ्यता की...!
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