वे अपार दुखों और संकटों के बीच
एक ऐसे सफ़र पर हैं जो ख़त्म नहीं होता
दिल्ली में सीरिया का एक युवक मिला
उसके वीरान चेहरे पर जीवन की मरियल उजास थी
इराक़ से आई एक स्त्री अपने बचे-खुचे अखरोट
सरोजनी नगर में बेच रही थी
हींग की आख़िरी कुछ डिब्बियों में उसके बच्चों की साँसें थीं
लड़ता हुआ व्यक्ति कभी नाउम्मीद नहीं होता
यह मुझे सीरिया और ईराक़ के इन लोगों ने बताया
वे अब भी अपने सपनों में वतन के आज़ाद होने से कम
कुछ और नहीं देख पाते
मैं नहीं जानता वे किस पुल के नीचे बसेरा करते हैं
वे संभावनाओं के अँधेरे में अब भी सूरज के खिलने को देखते हैं
उनके माथे भीगे रहते हैं दिल्ली की गर्मी में
वे किसी के सामने पसारते नहीं अपने हाथ
वे हमारी तरह जीवन का रोना नहीं रोते।
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