रंग-ए-दुनिया कितना गहरा हो गया (ग़ज़ल)

रंग-ए-दुनिया कितना गहरा हो गया,
आदमी का रंग फीका हो गया।

रात क्या होती है हम से पूछिए,
आप तो सोए सवेरा हो गया।

डूबने की ज़िद पे कश्ती आ गई,
बस यहीं मजबूर दरिया हो गया।

आज ख़ुद को बेचने निकले थे हम,
आज ही बाज़ार मंदा हो गया।

ग़म अँधेरे का नहीं 'दानिश' मगर,
वक़्त से पहले अंधेरा हो गया।


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