रात (कविता)

रात समंदर-सी,
देखो तो दूर तक अँधेरा,
अपने में ढेरों कहानियाँ समेटे हुए,
बे-परवाह, शांत,
अपने आग़ोश में लेकर सुकून देती,
आँखों में अँधेरा रात ही देती,
समंदर ने राज़ डुबाए,
रात ने अनेक राज़ छुपाए,
जुगनूओं की रोशनी को,
रात ने सितारे बनाए,
रात आती है,
सो दर्द जगाती हैं,
समंदर की लहरें है
शोर मचाती,
रात ग़मों का समंदर है
बन जाती,
अनसुलझे सवालों का हैं,
बवंडर बन जाती,
रात किसी की ना हो अधूरी,
चाहे हो कितनी भी दूरी,
हमारा दिल और समंदर भी,
रात में ही बहकता है,
दिल फ़रेबी,
ढलता भी डूबता भी,
रात ढ़लती फिर आती,
समंदर में लहरें आती जाती,
दोनों ही तरसते किनारे को।
रात एक नई सुबह को लाती,
समंदर वैसा ही रहता है।


रचनाकार : दीपक राही
लेखन तिथि : 2021
यह पृष्ठ 506 बार देखा गया है
×

अगली रचना

वहम


पिछली रचना

हालात
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें