साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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ग्वालियर, मध्य प्रदेश
1939
रात भर चलती हैं रेलें ट्रक ढोते हैं माल रात भर कारख़ाने चलते हैं कामगार रहते हैं बेहोश होशमंद करवटें बदलते हैं रात भर अपराधी सोते हैं अपराधों का कोई संबंध अब अँधेरे से नहीं रहा सुबह सभी दफ़्तर खुलते हैं अपराध के।
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