(एक)
तुम्हारी आँखें—
महेंद्रू घाट, बाँस घाट
तुम्हारे होंठ
गोलघर, बिस्कोमान
तुम्हारी बाँहें—
गांधी मैदान
तुम्हारे स्तन—
जंक्शन, डाक बंगला चौराहा
तुम्हारी बातें—
रीजेंट, अशोक सिनेमा
तुम्हारा दिल—
कंकड़बाग
मन तुम्हारा—
समूचा पटना
तुम्हारा प्यार—
जैसे पूरा बिहार...
(दो)
तुम्हारी बातों में
बरहैया का रसगुल्ला
मनेर के लड्डू
पिपरा का खाजा
प्यार के नशे में बहती है
कोसी, कमला, बलान
शामिल हो जाती है
तुम्हारी आत्मा की गंगा में
डबडबाई कजरारी आँखों में
आती है बाढ़
जिसमें डूब जाता है
मेरे मन का सहरसा
तन का उत्तरी बिहार
तुम्हारी बातों की मिठास में
और रसीले हो जाते हैं
भागलपुरी जर्दालू आम
तिरहुतिया लीची
तुम्हारी भाषा
जैसे जनकपुरिया मैथिली
तुम्हारे तानें
जैसे बनमनखी स्टेशन की झाल-मूढ़ी
तुम्हारे सपनों में बनता है
दरभंगा का घेवर
जिसे काँपते हाथों से बनाती हो तुम
टॉवर चौक पर
तुम्हारे दिल में रह-रह उठती है हूक
क्योंकि तुम मुझसे हज़ारों किलोमीटर
दूर रहती हो
और कभी-कभी रोती हो
जैसे झारखंड बँटवारे के बाद
रोता है—बिहार...

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