प्यार में कोई दवा क्या है दुआ क्या है,
जो हुआ उसमें बुरा क्या है भला क्या है।
वो हमें मिल जाए तो हसरत नहीं है कुछ,
ना मिले तो आरज़ू ही फिर बता क्या है।
ये बहारें ही क्या पतझड़ भी नहीं है कुछ,
आरज़ू ही जब नहीं मौसम भला क्या है।
वो अगर हमसे कभी कह दे मुहब्बत है,
मर ही जाएँगे मुहब्बत में वफ़ा क्या है।
सोचता हूँ सोचते हैं क्यों जहाँ की हम,
वास्ता ही जब नहीं फिर वास्ता क्या है।
वो तेरे दिल में रहा है रह गया है जब,
फिर कहाँ है फ़ासला और फ़ासला क्या है।
जब तुम्हें सब कुछ गवारा हो चुका 'रोहित',
ये ग़ज़ल फिर क्यों है आख़िर मसअला क्या है।
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