प्यार (कविता)

मैंने जाना प्यार को
जैसे पक्षी जानते होंगे आकाश को
एक धुँधली सुबह मैंने देखा उसे...
वह धुले काँच के गिलास की तरह साफ़ थी...
मैंने सोचा क्या ख़ूब है,
अगर वह टूट जाए
तो बस चाक़ू ही समझो उसे


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