साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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दिल्ली, दिल्ली
1955
पुराना घर इतना पुराना कि कभी पुराना नहीं होता कविता की उस किताब की तरह पंक्तियों के बीच ठहरे हुए किसी अनबीते की तरह मन में बसा रहता है यह पुराना घर पुराना घर आज भी कितना नया है इन आँखों में और आँखें ख़ुद कितनी नई हैं घर के इस पुरानेपन को देखने के लिए इसे कौन जानता है सिवा पुराने घर के...।
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