प्रियतम तुम पतंग मैं डोर हूँ,
प्रेम पावन मौली का छोर हूँ।
नियति प्रदत सम्बन्ध हमारा,
हृदयारण्य में विचरित मोर हूँ।
काली घटाएँ जब घिर जाती,
विपत्ति जीवन में भर जाती।
विसंगतियाँ विस्मृत कर प्रिय,
प्रीत गिरिदुर्ग रूप कर जाती।
स्नेहसिक्त प्रिय आबंध हमारा,
प्रसून सुवासित उपवन सारा।
माना कंटकाकीर्ण पथ है यह,
युग्मबल से इसे सतत बुहारा।
निष्कंटक नहीं दांपत्य जीवन,
गृहस्थ जीवन सदृश तपोवन।
विश्वास त्याग तपस्या से बने,
स्वर्ग तुल्य सुरम्य कुटी आँगन।।

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