प्रेम प्रेम सब ही कहत (दोहा छंद)

प्रेम प्रेम सब ही कहत, प्रेम न जान्यौ कोय।
जो पै जानहि प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोय॥


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प्रेम सकल श्रुति-सार है


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