एकाएक
कैसा खिल उठा दर्द
पत्ती-पत्ती में बनकर फूल
सहकर एक उम्र भर की अनदेखी
किसी अपने से भी अपने की
ख़ामोशी में किस क़दर रखकर गया था भूल
बेख़बर रहा आया कितना
मुझसे मेरा ब्याज, मेरा मूल।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
