पितरों का आशीष (कविता)

पितृ पक्ष में पितर हमारे,
पृथ्वी लोक पर आते हैं।
प्यार हमारा पाकर वो,
आशीष हमें दे जाते हैं॥

कल तक थे जो साथ हमारे,
साथ छोड़कर चले गए।
रहते थे हम सबके दिल में,
यादों को छोड़कर चले गए॥

विदा हुए हमसे जो अपने,
पितृ पक्ष में आते हैं।
वे अदृश्य रहकर भी,
अपना प्यार लुटाने आते हैं॥

पितृ पक्ष के पन्द्रह दिन,
वे साथ निभाने आते हैं।
दूर हुए हमसे जो अपने,
हमें देखने आते हैं॥

माता-पिता जीवन भर,
हम पर अपना सर्वस्व लुटाते हैं।
उनकी ही त्याग तपस्या से,
हम जीवन में सुख पाते हैं॥

जीवन में जो मात-पिता को,
प्यार नहीं दे पाते हैं।
पितृ पक्ष में पन्द्रह दिन,
वो झूठा प्यार दिखाते हैं॥

अपने मात-पिता का,
जो सम्मान नहीं कर पाते हैं।
श्रद्धा से श्राद्ध नहीं करते,
वो श्राद्ध का फल नहीं पाते हैं॥

अपने माता-पिता को जो,
जीवन में दुःख पहुँचाते हैं।
अपनी संतान से भविष्य में,
वैसा ही फल पाते हैं॥

श्रद्धा नहीं है जिनके मन में,
ऊपरी ढोंग दिखाते हैं।
पितरों के आशीष से फिर,
वे वंचित ही रह जाते हैं॥

सच्चे मन से पितरों का जो,
श्राद कर्म करवाते हैं।
पितर प्रसन्न होकर अपना,
आशीष लुटाकर जाते हैं॥


लेखन तिथि : 9 सितम्बर, 2022
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