साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल
1896 - 1961
फूटे हैं आमों में बौर, भौंर वन-वन टूटे हैं। होली मची ठौर-ठौर, सभी बंधन छूटे हैं। फागुन के रंग राग, बाग़-वन फाग मचा है, भर गए मोती के झाग, जनों के मन लूटे हैं। माथे अबीर से लाल, गाल सेंदुर के देखे, आँखें हुई हैं गुलाल, गेरू के ढेले कूटे हैं।
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