फिर मिरी याद आ रही होगी (ग़ज़ल)

फिर मिरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी

फिर मिरे फेसबुक पे आ कर वो
ख़ुद को बैनर बना रही होगी

अपने बेटे का चूम कर माथा
मुझ को टीका लगा रही होगी

फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी

जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी

फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी


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