साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
झरते पत्ते कर रहे, हम सबको आगाह। दुख पीता है नीर को, दुर्गम सुख की राह।। पतझर का मौसम हुआ, उजड़ा उजड़ा गाँव। मानो धरती पर पड़े, विपदाओं के पाँव।। मौसम का पारा चढ़ा, होता गर्म मिज़ाज। आने वाले वक़्त में, लू लपटों का राज।। पतझर में पत्ते झरें, केंचुल छोड़े साँप। गर दुष्टों का साथ हो, धोखा जाओ भाँप।।
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