पतझर (दोहा छंद)

झरते पत्ते कर रहे, हम सबको आगाह।
दुख पीता है नीर को, दुर्गम सुख की राह।।

पतझर का मौसम हुआ, उजड़ा उजड़ा गाँव।
मानो धरती पर पड़े, विपदाओं के पाँव।।

मौसम का पारा चढ़ा, होता गर्म मिज़ाज।
आने वाले वक़्त में, लू लपटों का राज।।

पतझर में पत्ते झरें, केंचुल छोड़े साँप।
गर दुष्टों का साथ हो, धोखा जाओ भाँप।।


लेखन तिथि : 5 अप्रैल, 2019
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