साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मुम्बई, महाराष्ट्र
1981
योगी रोगी हो गए, कहाँ करे अब वास। दूषित पर्यावरण से, मुश्किल में है साँस।। अब कहाँ है पात हरे, सावन में भी पीत। मौसम है बदला हुआ, ग़ुस्से में है मीत।। ताल पोखर कहाँ गए, कहाँ घाट चौपाल। कहाँ गई सहभागिता, कहाँ फ़क़ीरा चाल।। सौदा है शादी नहीं, जहाँ अर्थ का बोल। भौतिक दुनिया कर रही, दीन-हीन का तोल।।
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