परिणय सूत्र (कविता)

देखा-देखी प्रथम चरण हौ
दूजा है बरियाती
तिजा में दुलहिन घरे आई
निज संसार छोड़ी आई।
एक भरोसा तुझसे है प्रिये
तू संसार है मेरा
दो कुटूंब एकाकी हो जाए
ये अरमान है मेरा।
दो पहियों के जैसा जीवन
चलना है ये सिखाती
दो जीवन अनंत संस्कार
की पतित पावनी "परिणय"
परिणति।


रचनाकार : विनय विश्वा
लेखन तिथि : 2020
यह पृष्ठ 248 बार देखा गया है
×


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें