परिणति का फल (गीत)

वर्णों की क्वणित किंकणी
छंदों की छम छम छागल
धारण कर, कविता मेरी,
तुम नाचो कर मन पागल!

अधरों पर ललित गीति बन,
प्राणों में ज्वलित प्रीति बन,
नाचो नस नस, निर्झरिणी,
बन सुधा, सुरा, हलाहल!

ओ मुग्ध हृदय की देवी!
लय और प्रलय की देवी!
नाचो तुम जन्म-मरण में
बन बन कर परिणति का फल!


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