पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं (ग़ज़ल)

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं,
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं।

इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो,
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं।

बूँद टपकी थी मगर वो बूंदों बारिश और है,
ऐसी बारिश की कभी उन को ख़बर होगी नहीं।

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मा'लूम है,
पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं।

आप के टुकड़ों के टुकड़े कर दिए जाएँगे पर,
आप की ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं।

सिर्फ़ शाइ'र देखता है क़हक़हों की असलियत,
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं।


यह पृष्ठ 203 बार देखा गया है
×

अगली रचना

होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए


पिछली रचना

अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें