पछतावा (कविता)

सत्पथ जीवन चल रे मानव,
पुरुषार्थ सृजित नवकीर्ति गढ़ो।
झूठ कपट छल लालच दानव,
कर्मों पर पछतावा आप करो।

बनो धीर साहस संयम पथ,
सोच समझ हर क़दम बढ़ाओ।
आत्मनिर्भरता रखो आत्मबल,
पछतावा जीवन दूर करो।

सोच भला ख़ुद अपना जीवन,
परहित जीवन उपकार करो।
सदाचार संस्कार सृजित पथ,
पछतावा क्यों संताप सहो।

वाणी मधुरिम सद्विचार मन,
मिहनती ध्येय सोपान चढ़ो।
हो कृतज्ञ उपकारी जीवन,
अवसर पछतावा दूर करो।

बन राष्ट्र शक्ति कर राष्ट्र भक्ति,
निर्माण वतन संसाध बनो।
आन बान सम्मान तिरंगा,
रख लाज पछतावा दूर करो।

हटो सदा दुष्कर्म राह से,
खल काम क्रोध मद दूर रहो।
नशामुक्त मानवता रक्षक,
परिताप अनल से मुक्त करो।

बलिदान वतन झुक करो नमन,
संविधान नियत नवराह गढ़ो।
करो प्रेम सब प्रकृति जन्तु से,
पछतावा नफ़रत से दूर रहो।

नारी प्रति सम्मान भाव रख,
मातु पिता श्रेष्ठ गुरु मान करो।
मातृभूमि नतमस्तक जीवन,
क्यों हो पछतावा ज्ञान करो।

आज प्रदूषित प्रकृति चराचर,
वृक्षारोपण नव प्रकृति रचो।
पर्यावरण हो स्वच्छ, स्वस्थ जग,
परिताप क्लेश सब रोग हरो।

सब जन हित सब जन हो सुखमय,
आश यथार्थ में पूर्ण करो।
ला ख़ुशियाँ मुस्कान उदास मुख,
पछतावा से ख़ुद मुक्त बनो।


लेखन तिथि : 13 मई, 2022
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